पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
चिन्तामणि
४५९
पूर्णाकृत प्रकरण

}

३१६ चिन्तामणि ] पूर्घालत नारण । चिन्ताम िक च भार लंक लचकृति साई तन तक घमक छवि भान की। चपळ दिलास मद अलिस घालत दोन छालत बिलेकिन उसने मृदु वान की । नफि मुताइल अधर र ग संग लीन्हीं मच सध्या रग मस्तन मान । भईन फसल पर अदि यो अरूक लाल अमल कालनि झळक मुसक्यान फौं । इक अज़ में कुन्देन चेलि लगे मन मन्दिर फी च जन्म *। कुबिन्दु धे। पल्लव इन्दु जहाँ अरबिन्दुन नै मकरन्द झरे । उत्तबुन्दन के मुकुती गन है फल सुन्धर हैं पा आनि परे । सद्धि 9 सुति कन्द धनन्द की मंद मन्द सिलद्वि कप । पई अधात ६ दिई ३ परे मैह महेदांध के ब्रल फरें। होइन । पल पान ध मन से न प फ ने घेरे । ॐ रामा रममी उपधार अझै पानि र जन रे ।। ६ वह भार द भ भुज दए यक मे ॥ (२६३) वैनी । माय असम के बन्दोज्ञन थे। इनका समय १६९० ३। आस पास कहा जाता हैं । इनको एक अन्य त्रिसिज नै वैसा 1:या पर, दग नहीं है । फुट कति इनके हुचित से देखने १ र सुनने में आये हैं। जुन पा ६ के ईने नखशिम अयचा पष्टप्रग्नु पर ग्रन्थ निर्माण किया है। इनकी भाषा साधाप है और