पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४१२

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पधा । उपराष्ट्रत प्रकरणे । म१५ की आत्मीयता से मरी हुई हैं। सम पाने पर इनका अनूठाएन झलकता है। यह बड़ा ही सच्चा फच था और इसके प्रेम की बढ़ी सूची चर) सुयर मूर्ति पाठकों के सामने घी कर दी है। इन | छार की भांति लिया है कि प्रेम करना लाल है, परन्तु जसका | निवदना कठिन है। मैम के विषय में इनका यह मत थी । अति खीन मुनाल के तारते हैझि पर पद६ अयन है। सुई बैद हैं हारसी में ही परतीति है। टांड़ा लदाबने है | फर्षि घेघा अनी घनी नेश ते चढ़ शाप म चित्त ब्रायने है । यह प्रेम । पन्ध काल मा तरवार की पार । घामा ६ ।। विप छवि गरे के गरे गिरि ने मृगदार ते या फभी न करें। पद्दल की देसी प्रतीति व तच पर्यों न कई प्रभु पाहून हैं॥ वैषा में बनाये हुए प्रदुत से फुट छन्द और भी मिलते हैं। न्होंने प्रज्ञभाषा में चिंता की है, परन्तु का कहीं सदी पोळी मिति भाषा भी लिखी है । चैाधी की कविता सय मिला कर पछुत | प्रशंसनीय है। साहित्य-दिता में घाधा ॐ हम दास की श्रेणी में रफ्जेंगे।

  • अम मेरी कही नई मानति क्षति है उर जाम करी।

से सब हो दुटि जति भटू जब दूसरी मारि निपारा शूरी ॥ बाधा गुमान भरी वैन हौ फिरिबे करी बलां में नहीं पूरी। पूरी लगे लघु पुरन की चकचूर ॐ अव सवै मगरी ॥

  • सुभान के अमन ६ रन । उगि रूप जी की।

कैया सतक्रतु की पदरी लुटिये लप के मुसुकाएट तक।