पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४१३

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८२६ मिधाधुवाद्। [सं. १८ स्रो जरा गुजरा न ज न वाधा जहां उज़रान त । ५ आन मिति है। ज्ञान मि न जनि मिले आ जइरम कही । । । पिन गत सङ्गति पनात सर रिः नसा अंधियारी । पाता | मरके एकै घरकै उर लाय र सुषमारी में बीच में घाघी रचे रस रीति मनेा जग जाति घुग्यों वेहि यो । | युरि केलि करे जग में नर धन्य घई धन है चद्द नारी ॥ इस प्रतिम छन्घ से अधिक शैाइदापन मिलना पनि है। इनः विरहवारी में विविध छन्दों द्वारा एक प्रेम कहानी प्रवः ५०० पृएँ में की गई है। उदादरम्य दीजिए। हिदि मिलि आने ना मिल ६ जनावै ईत हिंन । म सानै ताकी दिद् न सिरहिये । दाय मगर ये दूनो मगर की लघु ६ घले ३ तास मुसा नवाये । योधा फधि नीति के निवेरी यही मत अर्दै । | अपि को सराई तादि ग्राप सराहिये। पानी का बुर चद्दा सुन्दर नजान हा | आप को न चाहै ताके बाप फ न घाइये ॥ नाम-(८८८) दलित किशोरी की टट्ठी सम्प्रदाय के महात्म । सानो रची। विवरण-सर्ने ३५५ पद हैं। छतरपूर दरबार में हमने इसे देख्न अपिता साधारण भैी की है। समय जांच से मिला।