पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४२

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४६० मिश्नइन्धविनेद। [१० १६१६ जमव को इन रिशैव ध्यान रहता था । अझ कई फी मत ५५ उपमा पद के हीं दिए यह भी की एगी वित्त घना डालवे थे। यद्द स्वामी तुलसीदास को है; घड़े भरा थे और उनके रामयिप ग्रन्थ की प्रशंसा में एक वधिः इन्ट्राने बनाया है, जो उत्तम न होने पर भी विपात है। इसी नाम के एक अन्य धन्दीजन मादाय भी हैं, जिनके दो अन्य हमने देने में पर जा रैंडीचा अधिक बनाते थे। पहले तो हमें सन्देह था कि ये देने मे पषी है, परन्तु इन पैनी के छन्द पैनी भीवाफार के अन्य में नहीं पाये जाते र दिपसंद जी ने भी इन्हें दी मनुष्य मान है। अतः हम भी इन्हें दें। समझते ६ । दूसरे वैनी अपने के प्रायः वैनी कांप ते थे! | भारतेन्दु हरिश्चन्द्रजी ने अपने सुन्दरीतिलक में पहला सपेय इन्द का देकर इनका आदर किया है। हम इन्हें पद्माकर की ये म कवि मान ६।। उदाहरण छह सिर में छबि मार पखा उनकी नप के मुकता यह। फए पियरी पट बनी इते उनकी चुनरी के झवा झद६ ॥ प्रयाग भिरे अमिरे दें तमाल दैझि रस पाल चढे लद्द । नित पैसे सनेह सै! राधिकाश्याम हमारे हिंधे में सदा ॥३॥ कांप पेनो नई नई है घटा मारचा बन चैटिन शूरुन । इह पुरी टिति मड़ल ने छहरे मन मेन मभूकंन हो ॥ पद चुन चुन की दुलही सँग राल के झूल झपन । क्नु पायस यै बिताती हैं मरिहा फिरि घाउ हुकन ॥६॥