पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४२५

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E१८ । गिन्नपि । [सं० १८२५ कविताकाल-१८२६ । पिंपरया–माइम्मद अली फे यी ४ । नक्ष भेगी। नाग--(६१६) धीनाक्षी गोम्यामी (मथि)। ---१) मूलराज्ञपिटास, (२) अन्योक्तिमजू, (३) ललिम्ब-, | राज भापी। कायतका–१८५६।। पिचरगा–महाराज मूलराज़ जैसलमेर-नरेश के सभासद थे। पाप संस्कृत के महा चिहान तथा भाषा के सूत्फयि में। साधारण धेगी। नाम-६४७) रोज़सिंह वायस ६ देलसँढी । अन्ध- दफ़रनाम।। कवितामाळ१८२७ । धरण–ीन श्रेणी। नाम-६४८) दुरिया साह्य ।। प्रध-(१) अमरसार (२) ब्रह्मविचैक (३) भक्तिहेतु (४) चीझक दुरिया साइज़ (५) प्यासागर (६) शामस्वरोदय दरिया सदिय (७) गु दरगर सद्दिन (८) ज्ञानरल (६) मान- दीपिका (१०) राषता दरिया साः (११) शन्दद्या साः (१२) सप्तसैया दरिया साः ।। कवितका–१८२७ के लगभग । वियरप-मैं सानु धे। पिंदर प्रान्त के घर कंधो हुदा में रहते थे। अपने का वीर सावव का अवतार बनाते थे । संवत् १८६७ में थे।