पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४३१

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मिध्वन्धुरिंद। [१० १८१८ की मात्रा माहुत पिप १६ । हम इस मा परि फी गणना सेनापति की ही में पारनै । जय इस ने फेवल परयों पर ही उत्तम कविता फी है, तब अन्य अन्य भी अवश्य भनार्य इंगै, परनु शोक वा पिपप है कि इस पचि में अन्य ग्रन्थ अघना छन्दै नद्दों मिलते ज़ में इनके एक अन्य अरियन पा पना लगा है। • नूपुर यज्ञर्त मान मृग से अधीन होग मीन ६ गावि परग्यांमृदा झर की ? पञ्जन खेगर्छ मैग्नि सुपमा रद्द की । म मनुफर से पराग येसरनि । रीझि रीम्झि तेरे पद छन ५ विढेचन के संचन ये अम्त्र धारै बेतिष परन हो । फूखत कुमुद से मैया से निरंप नृप पंकज से जिलें लव तरचा तरन का ॥ १ ॥ बारे ताप दान के मारे पाप पाहन के निपट निरास ये आस पाकी धरतै । छुड़े सससंग के अमर ट्यार । फूटे फल फल के श्च्च ते ज्ञाय मरते ॥ अति अकुराय के डेराय घबराय धाय | हि हि कई अागे काके घाय परतें । हैरते जा न प्रम्ब तेरे चरन सरन है। ये अज गरञ्जबन्द का जाय करतॆ ॥ ३ ॥ मानिये फरीन्द्र जी इन्द्र की सरास दृ मन तिमिर औरै भानु रिनन ॥