पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४३४

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- जन गैपाय } उत्तरातकृत प्रकरण ।साँचा:Gab५४७

| एक फघित लिया गया है। इसमें कुल १८ दे च २८ र छंद | हैं । आपा इसकी प्रशसनीय है 1 हम इनका हेप कघि की श्रेणी में रखते हैं। दुति दामिनी मयक छवि सुधा शाल उन्मनि । दुम पाई पाति वरनत सुधि रतन काति सम दानि ।। भुज भूपन मध लाल दुति स्याम चैति अवगै । ब्रहने किराने गड़ल सदित राहु चंद डिग वेश्रि ॥ इरी सारी ६ घुट घटा की छवे माही ओट भ्रनमित्त छवि छटर दामिनी की जगी है। कलानिधि कालीेनंदी के हरित प्रवाह परि परिलत चद की किरनि छवि लगी हे ।। । कैधौ सोभा सुधा की अलफ उरमगि बीच विमल चिलोकि मुले मनन में खगी है। सु दुरी के चंदन षतीसी में रदन पौति सीता में कांति मानै अगमगी है !! (६७०) जन गोपाल । ये महाशय मऊ रानीपूर जिला झाँसी के रहने चाले महाकवि हो गये हैं । इनकी भाषा व भावों में जा गम्भीरता पाई जाती हे चह सिवा उरकृष्ट कवियो की रचनाओ के और कहौ भी नहीं मिलती । इन्हो ने सवत् १८३३ में समरसार नाम एफ श्रादर- 'ग्रीय ग्रन्ध बनाया ।इनकी रचना बहुतही मन्य श्रोर भावपूर्ण है। हम इनको पज्ञाकर की श्रेणी में रक्जेंगे