पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिश्रन्धुघना। [सं० १८६६ ४थि शुरफीजी टु सिंधु का भाल | सरसो भनि समाधि सरसत है। मामायाम सोसन क्वलित कलासन के विध विनाएन वो चासमा घराति ६ ।। निदुर भुस ६ गंह में इस समय गन् । | दिन के दन की हुनि ये सति है। सभा समै रनधि नीर के निकट माना। व्रज के कलाधर फी का विलसत है ।। एषः जर पलि महात्मा दादू में शिप्प संयतु, १६५७ में भी देर गये है । उन्होंने धुवबारिश रचा। १६७१) प्रेग यमन । इनफी मनाया अनेकार्थनाममाला प्रथ हमने देब्रा है। इस में कुल १०३ ॐद हैं, जिनमें देाई विशेषता से हैं एवं कुछ मैं भी इन्द हैं। इसमें शब्दों के अनेकाधे कहे गये हैं। भापा इसकी साधा- र मार सरल ६ । इसका पढने से बहुत से शब्दों के अनेकार्थ जाने जाते हैं। यदि इस तरह का बड़ा ग्रंथ है न विदीप लाभदायक है। सकता है। इसमें संवत् का कुछ पता नहीं है, परंतु सरीज में इनका जन्म संवत् १७९८ दिया है और ये बिटो-निवासी लिखे हैं। इनका कविताफाल १८३५ के लगमग है । इम इनकी साधारण धे 5 में समझते हैं। चद्र शब्दार्थ। चंद मन इंस तार तरिका हो वसतूरी चंद्रन । पृथ्वी गए प्रश्न गत हैं।