पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४३८

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मनुसूदुन्टास] इरालंकृश्य । धनचर अमा विपुल बहु पच्छी । अलिअवधुनिसुनिअति अ ॥ मामा निनिसि जांच सरि सधैं । हिंसा हीन असन रुचि ले । लन चे राजें सपाना । लसिम नि पुल्पुनि लसिमन जाना। स समता की कच्चि परै सुन्दये मुनि सनकादि । |. चारी लामा गहिरवा ही फटी जय यादि ।

(६७३) मधुसूदनदास।

में महाराज माधुर वे थे ।इनका निवासस्थान इटा था । इन्होंने गोविन्ददास नामफ एक विभवसम्पन्न भष्ट्र पुरुष के कहने से संवत् १८३७, पाड़ सुदी २ मृदस्पतिवार के रामश्वमेध नामक के चुइत् ग्रन्थ रामानुग फुट में बनाना प्रारम्भ किया । यद् अन्य पदापुराण में घति रामाश्यमंध के पाघार पर इनर हैं। इसमें राय अपेज़ी सौ ६ ४३८ पृष्ठ ६। रामचद्र जी ने रावणं मामा के मारने का पानफ समझ कर उनके मास के लिए पत्र मेध यज्ञ किया था । पञ्च हुय के धार्थ गुप्त, पुष्फल ( भरत के पुत्र), हनुमान् पर्ष रामद् की प लेना राई थी और इन सेाग के क्रमशः सुबाहु तथा दमन, विद्युन्माली क्षित, घीर माण इथा मात्रैव जर, सुरण, मार अन्तरोगस्या रामचन्द्र के पुत्र लघ तथा फुशा से युद्ध हुए थे। इन्हों की सर्विस र्गन इस घट्टै फ्रन्थ में किया गया है। प्रम दे लड़ाइयों में राम की सेना ने धारण ही में जय प्राप्त कर ली, परन्तु तृतीय युद्ध में स्वयं शंकर जी से सामना है। गया, अतः यद्द सैना विजय प्राश न कर स । तत्र , रामचन्द्र जी ने बड़ी स्वयं जाकर युद्ध निवारा किया और राजा