पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४३९

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Ek तिम्रवन्धुनाई है। [1८६६ रगग्यि सुख दा; पर सेना प संग अभ्यरक्ष में प्रवृत्त मा । तुर्थ युद्ध में राजा र रामचन्द्र का भक्त धा, परन्तु श्रिय-धम्म पालन परने पर यह युद्ध में प्रवृत्त हुई । उसको प्रणं पा कि समता सेन छ र सघ सरदार के पन्दी कर दूगा भए जसे स्वयं रामचन्द्र जी वेंगे, वैध यि सरदारों पर होड़ फर मय के भी ई ६गा । नितान्त उसने अपने ना पूरा किया। पंचम युद्ध में छय ने पहले राप सेना के पराजित किया और इझुम्न सफ की मूच्छि पर दिया, परन्तु गान्त में नुग्ने र सुरथ ने मिल कर लय का वध लिया । इसमें पीछे कुश ने फिर सय सेना के पराजित कर दई है। कुड़ाया र फिर सोता झी के मिट जाने से विरोध नष्ट हो गया और , मंगा दे दिया गया । जय घोड़ा और * अयेया गया और राम- घन्द्र ने सुमन्त से सब युद्धों का हाल पूछा, तव लव कुश का हाल सुन कर उन्होंने दमय द्वारा अपने दोन पु र सोता है। अयाया बुला लिया। इसके पीछे भी भांति इा समाप्त किया गया । अनन्तर मदनदास जी ने अपने ग्रन्थकामान्य का६ र अन्य समाप्त किया है। इस कवि नै पथानामगि प्रपाली का पूर्ण झप से अनुः कारण किया है। प्रायः घरि चारा के छ एक ही वादा गया ६ घेार इधर उधर अन्य छिम भी शाँ गये हैं। गौ गह कई में भी एक साथ दे गये हैं। छार पर्दे के मिलाकर एक चापाई आती हैं।