पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४६५ मिश्रन्धपिनाद्। [ 1 सानु लाल सारी लाल ' साना री देग्नि की लालसा री हाल ६ सुन्न पाई। सूदी इ सी इर पसी नदि पर निय केंद्र उरभर्स समि तैसे चित लागे । सेज यनवारी यनवा तन अमिरन गैर तनपारी घनपारी मल्ल पायेंगे ||४|| (३६.५) जसवन्तसिंह (महाराजा माड़वार)। महाराजा जसवन्तसिंह का जन्म संवत् १९८२ में हुआ था। | में महाराज गजसिइ के द्वितीय पुत्र थे। इन ज्येष्ठ भ्रता का ' नाम अमरसि६ था । संवत् १६९१ में महाराजा गज्ञप्ति नै पपने पड़े पुत्र थे उन स्वभय के पारण उसे पराजपा फरफे देश से निकाल दिया । महाराजा जप्तचन्तति' सपने पिता के रूपयाप्त होने पर संवत् १६९५ में सिहासनाक हुए। महाराजा जसवन्त छ के राज्य से मूर्जता भेार प्रशान निफल गये और उसमें विद्या का पूर्वी सत्कार हुआ । इतिहास में लिया है कि इनके लिए म जाने कितनो पुस्तके वनाई गई। ये महाराज मध्य प्रदेश में बादशाह की ओर से लड़े थे। फिर ये महाशय मालवा के गयर्नर घराये गये । जप औरंगजेब ने राज्य पाने का विद्रोह किया, तब ये ही दृल के सेनापति नियत हुए। औरंगजेंच ने शादी दल के पराजित फरके जसवन्तसिह के गुजरात का गवर्नर कर दिया । फर पद से शाइस्ता पर के साथ ये महाराज शिवाजी से लेने के दृग, भेजे गये । न इन्होंने हिन्दू धर्म का पक्ष किया पर छिपे