पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४४३

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८६६ क्षिन्धुनाई। [सं० १६i नामकः पदं झाम है, जिसे हमने कई परि ६ ६ ।इममें कान्यपुन मानणं यातायरा से रहते हैं। इसी प्रम में हरिदास रहते थे। उनके पुत्र थे, उनके मधुराम, र उनके सपट उत्पन्न हुए। इम्ह उपद्धी 2 में दियनाथ, गुरुदत्त चार चैपीनन्दन नामक शीन पुत्ररद्धा हुए । देवकीनन्दन या जन्मकाळ ठाफुर शिषसि । में सवन् १८०१ माना है, और यई यथार्थ भी हुँचता है, क्योंकि ने 'गाररिस नामक अन्य स्वयम् १८४१ में मार अवधूत- भूपन संवत् १८५७ में बनाया। ऐमीनन्दन जी अचधूनसिह के यद्द रहते थे। वषार यी पूरपागल झै पुग्न नथमलसिंङ्घ र सुरतिसिंह हुए । अर्थमल- सिंह के अमरसिंह, तेजबलसिंह और धीरजसि' नामक तीन पुग्न इत्पन्न हुए । इन्दा तेतलति' के ग्रघूमसिद पुत्र हुए थे। ये महाराज्ञ दामऊ जिला हरदोई में रहते थे। सद्दामऊ मल्लाये के समाप हे ! सवत् २८५१ तेक देवकीनन्दन अचधुतसिए से यह नहीं गये थे, क्योंकि 'गारचरन इन्होंने किसी राजा या अधिय- दाता को समर्पित नहीं किया है। सराङ्ग में शिवसह जी ने कहा हैं कि उन्होंने देवी नमन को सिवा नखशिस्त्र के कई स्वतन्त्र ग्रन्थ माँ दुम्रा, परन्तु उहाँने लिखा है कि उनके दो तीन भी फुट फपित्त हमारे पास हैं ।” हमारे पास इनफा नशिख माया फुट फाव्य नौ ४. परन्तु टंगारचरित्र भार अवधूतभूप नामक इनके दी ग्रन्थ हमारे पुस्तकालय में वर्तमान हैं । औज़ में सफचिन्द्रिका प्रस्थ भी इनका बनाया ठो ६ ।।