पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४४६

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मनियार ] उत्तरकृत भको । ८६६ थे और इन्होंने सं० १८४१ में भन्नि का अनुवाद किया | अतः इनका जन्म : १८०० १ लानाग ना जाता हैं। इनकी रचना है। हमने सैदपलवारी, जिसमें १०३ छंद हैं, एनुमत् छच्चीसी ( २६ छंद), भाषामदे( ३५ छंद) और सुंदरकांड ६३ छंद) देने ६ बौर बैं एमा पुस्तकालय में प्रस्तुत हैं। मैं अपना उपनाम मनियार पार या रसते थे। इन्होने अपनी राम्पू रचना दैवपन में पी है । इनकी कविता में से सीइयेटहरी पचं सुंदरकांड रामायण के आधार पर लिने गये हैं, और हनुमानचायीसी स्वतंत्र विना ६ । एन अंधी फी कविता प्रशंसनीय और भापा संस्कृतमिश्रित प्रजभाषा ६ । संस्कृत मिश्रित देने के कारण इनकी या युछ ती यरंतु झोरदार प्रती थी। हम इन ताप धी श्रेणी का पर्व उमझते हैं। आज में भावार्थचन्द्रिका नमक इनका एक और अन्य मिला है । ज्दार- सौदर्यलदरी से । किछिन फनित पद नूपुर रेट गागत सुचरन अभिरन झनकार फी । दिव्य पर मत्र्य माह के कृम पिफ मुन्न। मंदल मयंक शोभा सरदं सुधार की । मनयर बान धनु घरिनि सहित कारण पास ग्रास इरिनि सुप्रभा भुज़ या फ। दामिन यो देइति सजग स्वामिन सी नैनपथगामिन ६ भामिनि पुरारि की है