पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४४८

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८६१ नेयान ] उत्तराञ्चकुन प्रकरण । सुंदरकाण्ड से । घेस्पो जाय गढ़ महादुर्गम अटूट जा नाम सुने पुरहूत पाय पहराते हैं। कंचन दिया दीड चुरञ्च बलंद चहुँ घर | चैार पदक समुद्र घरात ६ ॥ यार की प्रति इश द्वार दुरापार जरे कुलिस किंवार छबि पुंज छहरात हैं । छत्र मेंथ इंवर दिगंबर निलय भानें संचर: अरुन पताके फहराते हैं। प्र* काछी अह अट्टहास किलकारे हलकार कि मानो काल घटा घरात हैं। लेक जार आई सिंधु नष्ट के निश्ट क्वाटि | कैदि बिज्जु छटों की सी छटा छहरात हैं। यार कई पातकाल शह व मंडल विसाल मुख मंडल उघन उहत हैं। तामै अति चाळ जाल माळ की पेट भरी। , काछ ऐसा कीभ छ लाल लदरात हैं । महेझ से। मै चिस के दीनार से अति दूषरो हैं। अधरम बुमरी न सुधि के संभारे ६ । कदी तरी रीढ़ फयि बुद्ध थारी बने हैं। त्रिगुण ते परे है इरसात निधारे वै ॥