पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४४९

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८६३ निधपधुपिनाद । । [६. १८५ मनपार यातै मति थवित जर्किन है के | भत्रि पस धरि पर धीरज बिचारे । विरच कृपाल याक्यमाद्ध या पुहुपदंत पूजन झन फज चरन तिहार । । नाम-(९७८) पानिपाच्च । अन्य--१ उगनपचीसी, ३ चसन्तवेदार (१८५ पद), ३ रामरसा- मृतसिन्धु ( ५०० य? पृष्ठ }, ४ प्रार्थनाशत (दाहुँ। मैं १), ५ अनन्यचिन्तामणि (भक्तियन), ६ मतमतान्तरय, ७ जन्ममरण्यापचया (चाहा चापाये में), ८ श्री रामचन्द्र जू का अष्टयाम ( १६८ पृष्ठ ), ९ रामपपद्धति { १०१ 'पद्द), १८ नहील्सव (८३ पृष्ठ ११ विवादरम्य ( १८ पृe ) १६ सिद्धान्तभदायली, (२९ पृ.), १३ सदयनिर्णय, १५- माधुरीप्रकाश, १५ भायनासन, १६ असाम, ६७ सीता- रामरहस्य, १८ प्रीतिप्रार्थना, १९ सपद्धति । रचनाका-१८४३। चियर-छत्रपूर राज्य के पुस्तकालय में। कविता में साधारण बा। गन निवाई ही बनि प्राधे।। भाव कुमाय बचाब जान दे नैही तबै कहावै ।। दृग अटके मेन सीपि दिया तुष प्रीतम हुरथ वफावै । अपने मन न हो भयो परबस कैसे न्याष शुकाते ।। (६७६) छत्रकुंवर बाई ।। वा जी अपनगर के राजा सरदारसिंह जी घटी :