पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५०

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| रामसिंह ] उत्तराते प्रकरण । ‘सुप्रसिद्ध नागीदास की पाती थीं। इनकी विवाह संवत् १८३६ में फाटढे के नाची गापालसिद्द के साथ हुआ था। इन्होंने संवत् १८४५ में प्रेमघनेद नामक एक ग्रन्थ बनाया । इनकी कविता सरस है। झयाम सती इंसि के वरि दिसि घालीं मधुरे चैन । सुमन छुन थालए अवै यह विरियों सुखदैन । यह तिरिय सुमन जाने मुसुकाय चल्ली जाच । म्यछ सो फार फुचरि संग सहचर विधुर सुने || प्रेमभरी सब सुमन नुनत जिते तित साँझ हित । प दुहुँ वेबस मग फिरत निज ति मति मिश्रित ॥ ज़ी हैराने के कारण इनका प्रयत्न बहुत सराहनीय है, परन्तु काव्य की दृष्टि से इनकी गणना साधारण श्रेणी में हो सकती है। (६८०) महाराज रामार्सह । ये गद्दाराज छत्रसिंह के पुत्र नरपल गट्स के राजा थे। इनका फबिदाकाल सन् १८४५ था ! इन्मे अकादर्पय नामक देहे। में अलफा का तया रसनिवार व रसविनेद इस भेद है। अच्छे ग्रन्थ लेनाये । हुम इनका ताप फ्री में घी में रखेंगे। साइत सुन्दर स्याम सिर मुकुट मनैहर जार। मा नोल मन सैट पर नाचत राजत मार ६मकने लगी दामिन्दी करन लगे इन र। थालत माता ॐाइ चैौलत मात्रै मेर।