पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५१

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मिश्रशन्धुपाद। [ रु. १८४५ (९८१) भान कवि । इन महाशय का पूरा पता इन फाय से नहीं चलता, सफ़ इतना विदित देना है कि ये राजा ज़ौरविरसिंदी के पुत्र थे और राजा नजारांसद के यहाँ रहते थे। ये रनरसिंह मारिराजला ठाकुर सम्भवतः महाराज छत्रसाल के चंधि' थे, क्योंकि इन्होंने इनारसिंह जी का चम" की उपाधि सदित पन लिया है। पंचम की उपाधि देला ठाकुरों के अतिरिक्त भार किसी की नहीं है। संतती । छत्रप्रकाश में कई गइ यच्च उपाधि प्रसाल के दी गई है। पंचमलिंद वैदेने के पूर्वज और बड़े प्रतापी थे, इसी कारण उनके फुल चाले अपने नाम के आमै पंचम लिखना सम्मानधक समझते हैं। अतो जान पड़ा कि महाराज नजर दैला थे, और इन्दों के आश्चय में भान ने गद्द ग्रन्थ “नरेन्द्र भूषन' बनाया । इसकी रचना संधत् १८४५ में हुई, अतः इनको जन्मकाल सृम्भयतः सवत् १८०६ के लगभग हुँरगा। इसमें कुल १५ छंद हैं, जिनमें अलंकारा का पूरा धन किया गया है। मापा इसी वजमापा है और चद्द मनवार एनं जोरदार है। इसमें अमुपा उद्गार में राजा नारसिंह के यश, युद्ध-विजय, फीति इत्यादि चर्पित हैं। इसमें लगभग आधे उदाएगा चीर, अद्भुन्, भयानक एखादि इसी के चार अधेि ऋगार रस के ऐगे । प्रन्थ अच्छा है और उदाहरणच लक्षा स्पष्ट हैं । इस एनका कैच कफी धेश में उन्नते हैं। शिवसिंटूसरोंज में एक मानदास बंदोजन घरबार | है लिखे हैं, परन्तु उनवः पविलास पिंगल घाना कहा गया