पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५२

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इरालंय मकर । है, और उनकी उत्पति संवत् १८५५ फी या है। इन भान ने संवत् १८४५ में यह अन्य चा, अतः ये महाशय सरीज़ में लिशित भान- दास चरखारीनिवासी नहीं जान पडते, फ्योकि इनके घर उनके समय में कम से फम ४० च का अंतर है और इन्न रूपविलास भी न थमाया ।। | "पंचम भाल नजार मुलपाछ मैरी 'कीरत असाल तीन लीक न समति है”। रन मतवारे के जाराचर दुलारे सुच, | बाज़त नमारे भए गालिब दिगीस पर! दल के चलत मभर हात मा हेर, | घहित धरन भरी भीम भी फनीस पर ॥ देश के समर सनमुन्न भयैी ताही समे, | मरमत भान पेज कै कै विस्त्रे वीस पर । देरी ससैर की सिफति सिंह नज़ार, | ली पर्के साथ हाच अरिन के सील पर । यम से सयन कयाम इदु पर छाग रहूँ, बैठी तहां असित टुरेफन की पति सी । तिनके समीप तदा संद्ध फैसी जारी लीळ | अरसा से अमल निहारे बहु भांति सी ॥ सके दिग मळ साई दिदि विद्रम से, फदकति प्रेय जामें मेचिन की पॉठि सौ । भीतर नै कति नधुर वन कैसा हुने, मुने करि भन्न परिकानन पुढाति सी ॥