पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५३

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| ८६६ निधन्धुविद । । [ सं १८१७ (६८३) हठी । | इन्दनं संयम् १८४७ में राधादव नामक एप, गनाइ प्रन्य मनापा । शिवलिंद आ नै लिच्ची कि ये महाय जबासा धे। 'शान पता है कि मैं माथुर चैये थे। इनकी शाषा प्रा शापा ६ सैर इनके वाद पर मधुर भैर, घरत है, वैr यः क्षिरी होते हैं । इम इनवी गाना पद्माकर कधि फी भे में करते हैं। बी रंग भरी है गाठी रंग राचट्टी में फ झां सही सुन्दराई सिरता की । चांदनी फी, चम्पक फी, मैनफा तिलेात्तमा फी, रम्भा af रति को निकाई कैन 'फाज की । मातिन के हार गरे, मेलिन मैं मांग भरे, मातिन ते वेनी गुदाइ सुन्न साश की। चाद्ध गजराज्ञ नागराज कैसे खं द्विअराजसी सदन रानी राञ मजाज़ फी ॥ रूप सुर्वेद धनु राशि सहित निरमल मधु को पाय। माधव सूतिया भुगु निरनि च्या प्रन्य सुखदाय । (६६३) थान कावे । यान कपि नै संवत् १८४८ में दयप्रकाश नामक अन्य बनाया । इमदाने अपना बर्णन अच्छा कर दिया है:-- घास धसवार को विलासी और डिया के गिरिजा गिरीश की चिरड़ कर गान है।