पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५८

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| ९८४९ में बना । इनके क्षितीय ग्रन्थ रसविलास में बस और भाव- भेद के रन है, ब संवत् १८६४ में इन। । आकार में यह पद्मा- करत जगद्विनेद के बराबर । मैर रचना भी इसकी मुहर है। रसविलाल छिमनदास के नाम से बना है। इस ग्रन्थ से चिन्ति | हावा है कि येनी कवि स्यामी इंतरितेश के मदानुयायी थे । इन अन्धेरे के अतिरिक्त पैनी के पनाये हुए ३६ भेडा इस्तलिपित हमने देने हैं। ये तीनों अन्य पंडित युगलकिरके पुरनकालय में हैं। | इनके अतिरिक्त तैनी के जदुत से भीग्रा छन्द भंड़ोयास में मिलेंगे, जो भारतीवन प्रेस में छुपा है। इनका प्रथम अन्ध साधारण और निथ अच्छा है, परन्तु इन सबसे उत्कृष्ट रचना दो दी नै पाई ज्ञावी है। ऐसेभड़कीले मैं किसी भी प्राचीन कपि नै नहीं अनाये। इस कवि ने अनुप्रास और जमक का बड़ा ध्यान क्या हैं और यशयन, शुगर, गोति, और फुट विपर्यो पर कबिता की है। इन्होंने संसार की असारतर पर भी काव्य किया है। इन्होंने महाराजा टिकैतरीय के आमे की प्रशंसा बैंर दयाराम ६ मै की है छों द्वारा भारी निन्दा की है। एक रुपाने पर पुरा राई पाने पर भी आपने मैडौकद्द डाला 1 लड़नऊ के कांच छवदास की निन्दा नै इन्होंने तीन मैड़ी है। इनकी एम पद्मा- कर की बी में रमते हैं। जनक है इन फी, पन्नान युधिष्ठिर हैं। दान का धीच कड़े काम तर ६। प्रयु प्रज्ञा पालन का, फाल अरि ज्ञान का | सुथि मेपन हे मान सरपर है ।