पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४५९

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८३ मिथुपिनाई। [सं० 1E दति बुर सेन नेरुमरजद का ६, मुट मापन की नादि दरखर है। राजन कर रहे मजा थी टिकत य जादिर जहान में गरीएयर ६ ।। (दिनरायप्राश)। अछि । अधर गुगन्ध घयि अानने के, फानन में प्ले चाक घरेन चडाये ६। फाटि गई कंचुकी लगे हैं कंट कुजन है, मैन बरहीन झेल पार छवि छाये हैं । वेग ते गर्वन यीनै धक धक गत सोनी, उार उसाने नुन स्पेद सरसाये हैं। भढी प्रीति पाली भनमाली में बुलाने पर में हैत आली यदुतेरै हुपायै ६ ॥ (सविलास) र घर घाष्ट्र घाट घाट घाट ठाट उटे, मैलो मै येलो फिरे चैला लिये आस पास । कविन से घर क, भेद बिन नाद करे, मदा उनमाद कई धरम करम मात्र । घेगी कधि कई विभिन्नारिन के बादशाह अतन मकस तम राप्तन गरम तसि । हमा क, नैन मैन पी झलक, हल ईत अलका र अछक झलक दास ॥