पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४६

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| Trभ्रमन्युदिनाइ । [सं० ११५ | इस 9 की टीका दृपतिराय बंसीधर ३ संवत् १७१.३ में की। इस का का नाम अलंकारराफर है। विद्यासु ६६ लिम अप भी यह मयः सर्वोत्तम प्रन्य ६। यद्द प्रन्ध इस समय इमा पास मैजूद है। भापभूिपए की दूसरी तिलक सिद्ध कवि पर- ताप साहि ने बनाया । यह अभी हमारे ऐपने में नहीं आया, परन्तु परताप की फायनिपुणता से हमें निश्चय है कि यह टीका भी परमत्तम होगी । भाषाभूपये फी तृतीय टीका फचि गुलाम ने भूपचन्द्रिका ग्रन्थ ठरा बनाई। यह ठीका भी इमार गारा पत्त- मान ६ र वहुन अौ घनी हैं। महाराजा जसवन्त६ि की अलंकारां को भारी प्राचार्यय समझना चाहिए। दीं फी रीति पर अन्य कवि चले हैं । इन कविता भी परम मनोहर हैं। बड़े सन्ताप की चात है कि इन्दने घड़े महाराज होकर भी भाषा का इतना आदर किया कि स्वयं व्यरचना की और भाषाभूय सा उत्तम प्रन्य यो । यद्द • हिन्दी के लिए घड़े सौभाग्य की बात है। उदाहरण । मुन्न सस वा ससि से अधिक उदित जति दिन पछि ! सागरते उपजा ने यह फमला अपर साद्दति ॥ मैन कमल ५ ऐन ६ मार कमल वेहि पाम् ।। गमन करत नाक गै फनक खता यह नाम । धरम दुरे आरोप ते सुद्धापन्टुति हाय । उर पर नाहि इरोज ये कनक लता फल देय । परजस्ती गुन धेरर के प्रभार दिपे मारोप ।