पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४६१

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श्रिय मुनिनाद। [ १० १८१ का भेज़ में मिरा ६,इस बार सराज कात् अशुद्ध जान पड़ता ६। इनका जन्मयाल K० १८२० समझना स्वादिः । सजवार ने लिमा ६ कि भान नै गरिहार नामक अर अन्य ग्रना। यह ग्रन्थमने नहीं देना, परन्तु 'रसराप मामइनका पत्र द्वि- ग्य पन्थ पडित युगFिौर के मुकाम में पचमन है और समय हमारे सामने रखा है। इसमें ४३८ हुए, और सभेद नथा भापदि का पन है । यह घड़ा अच्ा ग्रन्थ है, परन्तु या के घडुरे ग्रन्थों की भाँति अम यह भी मुद्रित नहीं हुआ है। इस कवि व भाप शुद्ध मजभापी है, मैर चिंता वर्षगपुर पार Fप है। मैंन फचि फैहम पद्माक्र की ४ ३ रपते हैं। अपने रुपक अच्छे कई हैं। बार बार फेयन कनार्टी बदलत र विमल यिसाल भाल डिति पर पैरे हैं। चूकत न चाय भरे चैौकरी चलायचे में चतुर चल् कि चित चातुर से घेर ६ ॥ भान कयि कहें याग भैरहनि के ठासे नेक नीचते नटी से नष्ट नव निरे हैं। मैंन अातुरी से उझो चाहें चानुरी है थोर करत खुरी ले ये तुरी से नैन तेरे हैं। (६६८) कृष्णदास । शूरवास गिरजापुर घाले ने माल्हरी नामद प्रन्थ मा मचन् १८५२ से वैयसि १८५२ तर्फ पनाय ।