पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४६२

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बास्त्र] उत्तराखंडून प्रकरण । यद् अन्य छतरपूर' में हैं, जिससे इनके पिय का संच बातें ज्ञान पड़ती हैं। ये एछपि वाले प्रसिद्ध फुच्दसि से इतर कवि थे। इनका ग्रन्थ ४३० भारी पृष्ठों का है, जिसमें विधि छह में कृष्णकथा की गई हैं। इनकी गशाला साधारण भी में है। ये विन्ध्याचल के निकट गंगाजी के सनी, रिजापत्तन नामक आम में हूत थे। कान काज लाज़ ऎसा करे । अका अहे वार भर कही नरदेह फहीं पाये ! दुभ समान मिल्पो सुकछ सिंघान्त जानी। सील गुन नाम धाम रूप मेया चाइये ॥ घानी की सयामी सुत्र पानी में बहाय जे जानी से। न त जाले दम्पति रिझाये। जैसी जेसी गई जिन ली तैली नैनन हैं। धन्य धन्य राधा कृप्या नित ही मनाइये। भागयत भामा पद्म ( ११३८ पृष्ठ) और गियल नामक इन के थै अन्य हैं । इस समय के अन्य कवि गण | नाम-(६.८६.) कंजवर (कुजदास) घरेलूछा । न्यायनि । 2वला कलि–१८३६ ! भाम-(६.६०) प्यारेल तिवारी, भैरी बैसवाड़े के।