पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४८

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३६६ मिभ्रमविना; । [१० १६०० १६५२ कहा गया है, पर मुन्नी देवराद ने संयम् १७०० के छग भग इजर समय लिया है। इनकी कविता पटुत ही खास मार मनैदर है। मैं अपनी धुन की घटुर द्दी पौ । रसपान की मति में भी श्रीचन्द्र पी भक्ति में य ग थीं । इनकी भक्ति का परिचय इनकी पचिता से मिटता है । इनकी भाषा पंजाबो मेरि अद्दी घाटी मिश्विन ६, आ आदरणीय है। जान पड़ता है कि ये पन्जाव के तरफ की है। इनका इम ताप कवि फी थे में रपते हैं। उदाहरणार्थं इनके ६ इन्च उद्भुत किये जाते हैं। । सुना दिल जानी मैड़े दिल की कहानी तुम इस ६ बिकान बनाम भी सा में। देवपूजा ठाशो में मिवाज है मुलानी तर्ज़ पलमी कुरान साड़े गुनन गरी ६ ॥ स्पामा साना सिरताज सिर फुले दिये है, इ इणि निदान है। इस ३ । नन्द कुमार कुरान तड़ी सुरत में तड़ नाल प्यारे हिन्दुघानी ही रहूंग में । छ जे छत्रीला सर्व गुरू में गीला बड़ा वित्त का अड़ली कहूँ देषतां से न्यारा है। माल गढ़े से नाक, माज्ञी खेत सेई कान। मा मन कुडल मुकुट सस धारा ६ ॥ दुष्ट जन मारे सतज़न रखवारे ताज चित हित वारे प्रेम प्रीति कर वारी है।