पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४८६

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नींप्रबन] तराजूत पक्रयाए । । यि गे और इनकी कविता में मैं जीतही पाये जाते हैं। ये हैं होने फई विषय पर विशाल काव्य किया है, परन्तु गारोका, पर- कीया, और अभिसारिका के बड़े ही विशद घन इनकी रचना में ८। आपकी कविता में उत्कृष्ट छ की मात्रा बहुत पिए है। जसमें जहाँ देसिए, टकसाली छन्द निफळं। ऐसे बढ़िया छन्दों की इवगो मात्रा बहुत कपित्रों के ग्रन्थे में न मिलेगा। ये महाशय संत प भी अच्छे पंडित थे। इनकी कविता शुगर फाय फा ऋगार है, परन्तु आश्चर्य है कि सेनापते जी की भांति अद्याप इन के ग्रन्थ के भी मुद्रण का सामान्य नहीं प्राप्त हुआ है । भानुरा- नये का इनके अन्य बहुत शीव्र छपवाने चाहिए। इनकी गणना एम दास की श्रेणी में करते हैं। इनके कुछ छद' यहाँ दिने जाते हैं। काहिहो गॅधि बन्ना कि में में गज्ञनातिन की पहिरी अति आला।। आई फाँ हैं इष्ट पुखाग की संग यई यमुनो रुट वाङा ।। तुरत हुतारी ही बनी वन हॅस सुनि वैनन नैन माला | जाति म अंग की चदी सब से बदली बदली हैं मार !! १ ॥ भारहिं न्यादि गई ती तुम्हें यह कुल गई कि ग्वालिनि गैगरी । आधिषा राति ६ चैनी प्रवीन फहा छिग राग्रि की बारी ॥ अयै हँसी मैाहि देह लाखन भाल में ही महा घारी। पते बड़े ज़म इल में न मि कहूँ मागे रेचक ॥३॥ जान्यो न में ललिता अलि ताहिँ जु संचित माँहि गई करि हासो । छायै हिये मज फेहरिः ॐ सम मैरी तऊ नई नींद विनासी । है गई अम्वर बेनी प्रवीन मेड़यि छटी टुटी दुसरासी ।