पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४८८

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शर्षतसिंह ) इत्तरार्नकृत प्रकरण । है। मरण का १८७१ वि० बिंया हुआ है, पर यह अशुद जान पड़ा हैं। इनका कविताकाल १८५६ प्रतीत होता है । सरोज़ में दिनापछि फे। प्रायः उत्पत्तिकाल कहा गया है। उसमें सिवा । उत्पत्तिकाल फे और केाई समय बहुत करके लिखा ही नहीं है। विरवति'हर लिखते हैं कि इनके पास संस्कृत तथा भाषा के बहुत से अन्य कई थे। इन्होंने दो अन्य बनायें थी 2 गार- शिमग, मैार शालित्र | इनका प्रथम ग्रन्थ मारे पुस्तकालय में वर्तमान है, परन्तु हिताय हुमने अभी तक नहीं देखा । ऋगार- शिरम में भायभेद और रसद पर हैं। अकार में यह तिराम के रसराज से इट्टा हामा ! अहंकार का प्रसिद्ध ग्ध भाषाभूपग भूमफा बनाया हुआ नहीं है। इनकी चिंता का हेम साधाग्या समझते हैं। घनन कै घार सैर. चारी मेर, मान के अति चितवचार पैसे अंकुर सुनें हैं। कलम फुक हुक हैविहीन हिंय क्लक में लगत चोर वारन चुनै ६ ॥ झिल्ली झनकार तसो किन पुकार द्वारी मारि सारी डारी दृम मंकुर सु नै रई। हुन रह शाम प्रानप्पारे जसवन्त विन फार पीर लाश ऊदे दादर न रहूँ ॥ (११०६) यशोदानंदन । इन माशय को क्वाई विशेप पा ने इनके प्रन्थ में है और न