पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४९१

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६०१ नियुपिनाद । । [सं० १८५७ 4ई वसिन प्रान सभ सासन की अधिकारी । गइमा थार फटार फार पंचपात्र अर झारी ॥ आई ६ घरत पासठेस की विद्रपुर घसती के याल तुरंत उठि धाए हैं। देख्न अपि राज़ के समाज के भूिति भूति सेना चतुरंग रंग रंग ६ सुपाए हैं । पू' पितु मानु अ!ि भूप जुन काई पर । मर लाई घात ५ ६ घटाए हैं। दंत इजियारे भारे आरिन के फंद फारे ताप दसरथ के दुलार चंद आए ६ ॥ | (११८८) भजन । इस कवि का कोई प्रन्थ मारे घुमने या सुनने में ना आया घरम् स्फुट कचित्त भी यहुत ही धाडे पाये जाते हैं, पर ना अ है । इनका जन्मशाल संग्रत् १८३० ई, ज्ञा द्विन्धी ऐन में छिन्ना है। इसी नाम की एक मैथिल फांव भी था । इनका पिता- काल १८७ के लगभग मर्तत देता है । इन इम ताप की भैण में रचते हैं। भापा इनकी अच् है । इनके दो छन्द इम नो देते हैं:-- अन्त्रर च पधर देखि ३ कान के बीज सो न ग हैं ?।। भजन डू नदिया यहि कप फी नाच नहाँ रवि अर्थी हैं । पन्थिक राति यसै यह दैस भी नुमके उपदेस दया है। या म द सनै प६ नोच जु पाथफ में ज़रि मैव भयो ६ ॥ १ ॥