पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४९२

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करन] उत्तरार्ता प्रकरण । | ६६६ केाऊ कहे है कलंक केऊ कई सिन्धु कि ऊ कई छाया है मागुन के भास की । फेऊ क सुगमद कैऊ कई दु द् ऊ के नीलगिरि आभा सि पास की। भजन जू मेरै जान चन्नुमा के छलि विधि राधे का घनायें। सुन्न लेभा के विलास की । ना दिन ते छाती छेद भये हैं पाक के वार पर दबिश है नीलिमा अकास फी ॥३॥ कुछ है। पहले छन्द के लाल कवि का घतलाते हैं, पर वद् भंजन का ही प्रतीत होता है और सरदार कवि के गारसद एवं पंडित नषादी चिनारी की मदनमंजरी मैं इसी कवि के नाम से दिया गया है। (११३०) करन कवि । इनके विषय में ठाकुर शिवसिंदर्ज लिखते हैं कि ये पज्ञानरेश के यहां थे और न्ही रसील त्या सादियरस बनाये हैं। इमने इनका रसकोल नानक ग्रंथ उक्त ठाकुर सत्र के पुतक- लय में देखा, परंतु उसमें कुछ संवत् या पता इत्यादि नहीं लिखा है। उसके देने से इतना जान पड़ता है कि करन के पिता का नाम पंशीधर धा । ८६ अंध संवत् १८८५ का लिखा हुआ है, जिससे दी जान भने ६ कि उच, संचत के प्रयम पद ना लैयानुसार यह जान पड़ता है कि ये पड़े थे- गा I