पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४९५

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मिथ्य/नाई ! १० १८ तया राधा-कृष्ण का घन है। इनकी कविता परम माद्दर र गग्मीर हाती धीं। इन मर्गिव सुधरा की मी अन्न घन किया है। हम इन्हें दास वाचि की भी में रहोगे । इनका रचनाकाल खोज में १८५८ मिला ६ । क्षय रमठ र निकट जमुना यदि आई। मनहु गोल मन माल विपिन परिर सुखदाई ॥ मन नील रिक्त पति प.मल कुल फूले फूलनि । जनु घन पहिरं रंग रंग के सुरँग दुलने । पुनीषर फल्दार के फट् पदुननि पेभा । मनु जमुना दृा झरि अनेक निरसत घन सामा। तिन मधि झन रोग प्रभा लज्ञि दैटि न हरति । निने घर की निधि रीझ रमा मनु वन पर याति ॥ सरस लुगध पराग सने मधु मधुप गुंजारत । मनु सुखमा लव झि परसपर सुषस उचारन । पुलिने पवित्र विचित्र चित्र चित्रित जहूँ अवनीं । थित गऊ मनि संचित इसतिं प्रति कोमल कमनः। ज्ञ द्वारा प्राप्त इम’ अन्य प्रन्धे के ये नाम हैं:- (5) अर्देश भाषा, (२) चिंदानंदघन, (३) कलियुग रासी (४) पिंगलग्रंथ, (५) समयभयंत्र, (६) श्रीरामायगसूचनका।। | (१११३) मुंशी गणेशप्रसाद कायस्य ।। (पद् दोल्लो तीर्थेरा) । इन्होंने 'राधाकृष्णदिनचर्ग' नामक अन्ध ईग्दो-पाइयों में