पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४९७

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१३ मिश्रभुयाः ।। [म 3८६। सम्मन मीठो यान में होत सर्यं सुने पुर। जेई नई सीता वैये नैहि नाग मन्न धूर (११ १ ४) गोस्वामी जतनलालजी ।। नवा घनाया हुआ अनन्यसार प्र मने नरपूर में देखा है । या! ३९४ पूरा का पक यही ही उपकारी प्रम्य है, क्योंकि इसमें गेस्यामी दिनदरियज्ञ का झीनचरित्र तथा उनके घराधे हुए अनन्य मत या अच्छा पर्गन लिया है और इस मत के घात से मारिमा के हाल ६स में वर्णित हैं। इन। समय जांच से घर १८६० शनि पहा ! य ७२ घेर २५२ ६ फी वार्ता के दंग पर पनन्य मत पा परमेपकारी ग्रन्थ है। पिता की दृष्टि में इन में साधारण शेण में रहनेगे । इस ग्रन्थ का प्रकाशित ईना अश्य है। वृन्दावन मुम्ने रसिका दास श्री कुत महत्त्व है। दग्पति रूप प्रकास पास निनु सौ टहल में ॥ छिन छिन प्रकृति विचार घरति प्यारी पिय आगे। पुाया ला सा छाइ भाई मद आनँद पागे । घर में बन उवि प्रेम की समं झुल विशोर मन ! नित सुमिरी धी हरियश का सिफारामा मानधन ॥ (३ ३ १५) सुन । विचिस ने मून झिग्य असेपर जिला शाजापूर चाले का समय स १८६० लिखा है। उन्हांने इन रामराज युद्ध नामक अन्य फी नाम दिघ कर अन्य पन्ध वा ना माना है।