पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४९९

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मधन्धुदि । । ० १८६ टीका, माग प्याषण, मसादिरंभापा, मिंदामनबत्तीसी, सैता- पी, माधयानल और शकुन्ता । ये महाशय वर्तमान / . जन्मदाता पदं जाते हैं । इनके प्रथम बहुत से गद्यलेखक है। गरी है, पर उनके प्रन्यं न ऐसे उलित थे और न पर्म प्रपात ही हुए। इन्ने मैदा आदि भी अच्छे पड़े हैं। हम कपिता की दृष्टि से इन्हें साधारण भेग में रयते हैं। उदारच प्रेमसागर से :- Jषदेव जी घेाले कि राजा पय समय पृथ्वी मनुष्य तन धारण कर अति कठिन तप करने लगी। तद अमा विष्णु रुद इन ढाने देघता ने पिंस से पूछा कि तू किस दिये इतनी कठिन तपस्या करती हैं। धरती बाढी कृपानिन्धु ! मुझे पुत्र की वांछा है, इस कारण मा तप करती हूं। द फर मुझे एक पुय अति बल- पर महा प्रतापी, धडा तेजस्वी दी, पैसा कि जिस्का सामना संसार में कोई न करे, ने प्रद् किसी के हाथ से मरे । यह वचन सुन प्रसन्न हा तीने देवता ने नर दे उससे कहा कि तेरा सुत भीमासुर' नाम अति यली मदर प्रताप द्वारा लम्स्टूी लाल का जन्मकाळ १८२० के लगभग ६ पैर संवत् १८८१ में ये जीवित थे। इनके भरा का संयत् इम दागे की ज्ञात नहीं है। ये सागरादासी चैराच्य गुजराती ब्राह्मम ये और अधिफार्थ मुर्शिदाबाद तथा कलकत्रों में रहे । ( १११७) सदल निश्न । घर्तमान गद्य के जन्मदाता सदल मिथ और लल्लू जी साल