पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५००

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सदन] वैरालंकृत प्रकरः । माने जाते हैं। ये है। पूर्वकाल में भी कई गद्य ग्रंथ लिखे गये, पर उस समय इस प्रकार के द्ध ग्रंथ बनने तथा धहुत से कवियों द्वारा कविता में उदाहरणार्थं गदा लिये जाने पर भी गद्य का प्रचार नहीं' हुमा । देव जी ने एवं अन्य चहुत से कवियों ने यत्र रात्र अपनी अपनी कविता में गद्य भी लिया, परन्तु किसी ने इसका प्राधान्य नहीं उक्त। फिर उन सभी ने गद्य भी पद्म हो की भी बजभाप में क्लिा। कुछ वैवाक आदि की पुस्तकें भी गय में लिखी गई और फई ग्रन्यों की टीका भी प्रजभाद। गद्य में बनीं, परन्तु पहले इल गारजनाथ ने गद्य काव्य किया और फिर ग्न चेली प्रधान राय में पुस्तक रूप से गंग भोट ने काय किया और टमल में संवत् १६८० में मैराबाद की लड़ाई लि । उसके पीछे सूरत मिन्ने । बैतालपचीसी या संस्कृत से ब्रजभाषा में अनुवाद संवत् ५७ge के लगभग किया। इनके प्रायः १६० पर्ष बाद इन्ही दानी महाशयां ने गद्य में वाय अन्य दिने र सभी से यमान गद्य हिन्दी की जह दृढ़ना से घिर हुई। ये दोनेां मटाशय फोर्ट विलियम पालैश में फिर थे पार पढ संपतु १८६० विमास में इन देने। नै राय ३ पन्ध नारे । 'म समिर र नासतापाग्यान देने वाली संघ में जा गिल स्ट की आदानुसार बनाये गये । देउनै छात्रों के पनार्थ घने । उसी समय से गद्य काय का पिशेप प्रचार हुआ। लल्लू- साल नै हो। प्रजभाषा की मात्रा विशेष लि, परन्तु सदल मिंध नै सही पाली की आधिश्य रक्खा । इन दो ने ब्रजभापा पैर खड़ी यौली का मिश्च किया है।