पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५०३

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मिथ्यन्युधिनाद् । [सं० १८६ ५ | नाखतापायान में ३८ पृष्ठ है। इसमें मशले नै मसिनु । उत्पत्ति पर यन । पर फिर उनके द्वारा यमपुरी का दर्शन और पिय से उसका हाल कहना कथित ६ । कया पी पद्दी गई है। चार इस गद्य में काव्यानन्द प्राप्त ईतिी है। कद्द कहीं एकाध मान पर कुछ न भी दे दिये गये ६ । अन्त के धाग में यमराज की भिा का घन कुछ कुछ उपहासास्पद हो गया है। कुल मिलाकर रह प्रये बहुत आदरणीय है। उदाहरण:-- म निवासी सुख के राती एरिचरित्र न गायै । फांध गर्भ के नीचे सग कर कहा कान फल पाये ॥ पनि चार महा मद मानें हृदय धरा में पाये। आतुर हैं नारिन के पीछे मानुष जन्म “याये। समज सिञ्चिदयिक ॥ ३वतन में माफ गपत्ति की प्रणाम करना है कि जिनके चरणकमळ ६ काम किय से न टूर तो ६ से दिन दिन य में समति उपजता चा सार में लेम । अग्र भाग विलास कर सबसे धन्य धन्य का अन्त में परम पद का धते हैं कि ज्ञ६ इन्द्र आदि ऐवता सय भी जाने के ललचाते रहते हैं। | चित्र विचित्र सुन्दर सुन्दर बडी वडी अंटारिन में अदिपुरी समान भायमान नगर, कलिका परमपी धीर नृपति फगनी महाराज के सा फूला फला है, कि जहाँ उत्तम उत्तम राग पास ६ औ देत देश से एक से एक भूगी जन आय आय अपने अपने गुज का सुफल कर वहुई आनन्द् में गगन Bाते है ।