पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५०४

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दीन ] उत्तराप्ति प्रकरण । ६३५ | (१११८) गुरदीन पड़े ।। इनमे संवत् १८६० मै बागमनेर नामक ग्रन्थ बस प्रकाश में पूर्ग किया। इस ग्रन्थ है घिौपपता इस कांच को न लगन्ना 1 यह फप्रिया के दंग पर बनाया गया है. यहां तक कि फप्रिया में भी बीस ही प्रकाश हैं और इसमें भी। इसमें विनिया से इतनी विशंपवा रखी गई है कि और विपयों के साथ कवि ने पूरा पिंगल | मी कडू दिया है। इसी कारण इसमें प्रायः हर प्रकार के छंद एवं मेरा मडी, पताका इत्यादि सच प्रस्तुत हैं। इस अन् की रचनाली अच्छी है। इस तरह पर पिंगल और पति के मिलन अन्ध भापा- साहित्य में कम हैं। जी जी विपय कि कपिया में कहे गये हैं, ये सब पूर्ण रूप से इसमें भी वर्णित हैं । इसी भाप चैपमाडी तथा प्रज्ञापा निश्चित हैं और यद्द ललित तथा प्रशंसनीय है। इस पफ ही अन्य फेा पक्षक पाठ्कृ को भापा-धायरीहि वा शान है। सकता है। बड़े शोक का फिश्य है कि यह ग्रन्थ अभी तक मुदित नहीं हुआ है। हम कवि शुरन जी की पद्माकर की ये में सगाते हैं। भापा-काव्यरसिके फो यह अन्य अवश्य पेयमा चाहिए। यह कार में १७५० अनुष्टुप् छन्द भरर होगा पार रायल 'अनुप के इसमें प्रायः १४० पृष्ठ टैगे। मुस सस सस ठून फळा धरे। कि मुकता गन ज्ञाचक नै भरे ॥ खलित हुकली अनुदार है । इसम की वृषभानकुमारि के ॥ सुइ जंव किभाल सेवाग के। साल मंत्र क्रिी अनुराग के ॥ भूफ़ाटे यी दृषFIमुता खसे । जनु अगससिम का हो ।