पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५०६

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उत्तराय प्रवर ।। नाका ] ६१५७ ही में स्वकृत छन्द का अक्षण भी लिखा है। इनकी कविता सुन्दर है। इम इन्हें साधारण अंशी में रखते हैं। गने नायका राधिका नायक नन्दकुमार। तिनकी लीला फागु की घर परम उदार ॥ पेर, अंगूठी नचै उफ १ कर फैन मैचों से दुश्च ति । कानन पात्र तरोना डुलै , कपालन झाई मा सरसावति ॥ माखन फेरि रंग कि न्यूनर कंचुकी हरि या तरसावति । झूम कर आप मुख चन्द ते गाघति माने सुधा परसावति ॥ (११२१) मुरलीधर जी भट्ट । में तेलंग धरण लचर के पुत्र राजा बनविसिंह के कवि हैं । इनका जन्म अनुमान से सवत् १९३७ में हुअ । कविता परस करते थे। ५ महाशय ताप की भै हो के कवि हैं। छाकी प्रेम छाकन के मैम में बौली । |ल की पंखुरिया के उलम इडली गई। गहरे गुलाचन ६ गद्रे गफर गरे । गैरी की सुगन्न नै गैरकुल गली गई। दर में दरीनट्स में दार्मरी दिवारी दरी दंत की दमक दुति दानि मुली गई। असर घमेली चाम चंचल कारन हैं चाँदनी में चंद्रमुनी चकित चली गई ॥१॥