पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५०९

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45 मिन्धविन् । १८५३ चंद्रुिषा भी कीरति चहूँ पर जाकी छ । नुन धवार शाही परम मिल भी है। ३।६ मनीराम गुनसार के न मुर्म शत्रु के के उद्देद पहली कार भी । घनन यलंद गुप्त कै १ नुवंस ६ । चैट के ममान घालवंस मदिपाल भी !! ज़ में पिंगद्ध नामक प झन्य चार मिला है जिसका इन्दन संवत् १८६५ में राज्ञा उमापसंद आज्ञानुसार लिए थे। मम११ १२३) मानदार। ग्रन्थ-(१) रामकुवर (६७ पृष्ठ), विलास (३२५ पृष्ठ)। समय-१८६३ । विप-मकूटविस्तार में देशद्दा चपाइयेरे द्वारा नाममहिमा, भन्ममि, भकिशान इस्पादि फा इन ६ । म्या- थिस में एचरिंज का मेज़ से द्वारा पर्यंत चन किया गया है। कविता साधारण ; पी ६। हमने ये न्य दर छतरपुर में देने हैं। सरदेस मुचे चरित मुहार्य । घन दल रॉय व्याधि घर माय !! पिनुर्हित चार घन करि सुर काबू । लंका जाति अवध करि राजू ॥ भना मन धेि हुए कृाछ ! जगन्नार्य अगदीस जगत गुर्य प्रज्ञपति नदपाल ।