पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५११

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१३५ वादा (देसी भाषा), (१७) इवित्त सबैया दाद, (१८) सिद" गरी ( १८४२)। रविशषिर-1८६७। । विपर-इन महाराज ने मैन् १८६० से १५०० तक राज्य किया। इन पवा फी भाषा राजपूतानी ६, परन्तु मनमाथा में भी ये माशय र दिदा करने में समर्थ हुए हैं। इन पद्दत से छन्दों में फॉपमा ६ स्वर रचना में वृनवार्ययर भी परे है ! इनकी आपा मार और दुनिये फी सी ६। इम इन्हें तैष का ४ थी में रगे। सीत भई सुमद् समीर ते चलते मृदु अम्बन के मंजर सुग्रास मरे ब्रा पेर। जिन उद्यत परिमल पी लपट यति । ललित सुचित जान भैरन के खेत चार । आया सुमाकर से िन वैक्म की। हैरत ही दियरै उठत मुम्र की दिला। अति उमदाने रई महा भेद साने २६ भैर पड़ानें रदं जिन पर सौम भार॥ नाम-( २६) महाराज सुमारविंद, घमास ! प्रत्ये—(१) पंचाध्याई ( १८६९ ), (२) मैरींचाई की महिमा (१८६९, ), ३ इस्लचमन ( १८७० )। कविताफा–१८६६।।