पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५१३

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११५ | मिधग्रन्धुप-द। [५० १६३६ याने पेने दशक में पलत असे मऊ * कालाई लग्ननऊ : दादास ।। पैरी फन फा थेदान्त दाना शिधरन इजा ने लंबत् १८१८ में | छिपा ६ । पनो का रसपास नामक अन्य संवत् १८४ का बना हुआ है। बैंगो पघि घट्टै मंदाचाय थे । इस पद में उन्होंने इटमऊ पाले फी भर प रयानै के निवासिपे फी भन्दा का तलकदास की उपमेप धनीया ६ । मः अनुमान से हटकदास के पन्पनिय को संवत् १८६० के लगभग जान पड़ता है। सम्वनऊ में गका पता भी लगता, परन्तु धनी ३ इन्हें लखनऊ- पासी माना है और इनका अन्य दख्ननऊ से १६ भल पर मिला । चैनो के पत छन्द से यह भी विदित होता है कि महात्मा लडक- दास की धार करते थे, इनके बहुत से शिष्य थे, और ये फस से घाद भी करते थे। जान पड़ता है कि इन्हौन थी बेनी की से भी याद किया था और इस से युद्ध होकर उसने इनके सीन भी ईन्द वनाये । इन छन्दों के अनुचित होने पर भी इमें इनसे इस मारमा के चरित्र जानने में बड़ी सेवायतो मि। । सयौपाख्यान में रामचन्द्र के जन्म से लेकर उनके विवाह- परन्तु फथा घड़े हो धिस्तारपूर्वक घर्पित है। इसके पी। उनकी हैली और जलकैलि माई के कथन हैं। ज्याभिपैक एधं धन- श्वासप्रसंग इन्होने नही उटाया है ! जै जै पाते इन्हें उचित् नहीं जाने पह, उन्हें ये छोड़ गये हैं। पशुराम से विसी व का फाई भी विवाद में फरा के दोंने उनसे राम ६ मनुषमात्र