पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५१४

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झदास] उत्तराखले #र । ६२१ दिला खिया है। इसी प्रकार वनवास की कथा न फह थर अपने ग्रन्थ ही समाप्त फर दिया। इन्नुनि रामचन्द्र के जगद्विख्यात कम फा सुइम चन किया, परन्तु उनके गार्हस्य कार्यों में चला दीं निस्तार प्रिया । घाउमीजी ने बालकाण्ड में सबसे अधिक विप्र क्रिया, परन्तु इस पथि नै सनसे भी दुगुना बालक बनाया है । इन भरपा मानेर यमी तुलसीदास की ही भाषा है और इनकी फयिला यही मने है । कई जगह पर इन्द्दन रघुवंश भार नेप के भाव से हैं, जिससे जान पड़ती हैं कि इनफै। संस्कृत फा भी अभ्यास था | इन्होंने अपनी का भी पुराण की राति ने लिखी है और घडू प्रशसनीय है। बहुत लाने पर इनके तन तुलसीदास जी से मिल जाते है और इनके भरिमार्ग के विचार भी स्वामी जी से मिकतै जुते हैं । इन्होंने आधी दहा चैपाश्री में कथा कही है, परन्तु कहाँ कहाँ अन्य छन्द भी लिखे हैं। इन्होंने अनुमास आदि का ध्यान अधिक म रम के मुख्य पन के प्रधान रा है । हम इनकी गपना मदनदास की थे । में करते हैं। धरि निज पत्रे गम के माता। लह नाद लधि मुख मृदु गर्यता ।। दन्त कुन्द मुकता सम सोहैं । बन्धु व सम जीभ धिमाहे ॥ सिर दर कृति इन्द्रनील सम गड चिरा ॥ सुन्दर चिनुक नाका हें ।