पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५२०

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क्वलसिंह ] अत्तरीलंकृत प्रकरग्यू । की श्रेणी में की जाती है। आप का जन्म संवत् १८२१ में हुआ था पैर सैः १८६५ से ३८५१ तक राज्य रही। आप ने सं० १८६९, में अँगरेजों से सन्धि की ।। | (११३३) नवलसिंह कायस्य । ये महाशय' झाँसी-मधासी यासाच कापस्य समथर- | नरेदी ज्ञा हिन्दूपति की चैया में थे 1 सुकवि होने के अतिरिक्त से विघ्कारः । ॐ ४ ! इन्होंने संवत् १८७३ से १९२६ पन्त अन्य-रचना की । इन के तास अन्ध वैज़ में मिले हैं, जिन में एक ब्रजभापा गया की भी है। अन्धों के नाम पे हैं:- रासपचापायो, रामचन्द्रविलास का आदि खंड, रामचन्द्र- ‘वलास का रसिड, रामायाकैश (१९०३), शङ्कामायन (१८७३), सिकरंजनी (१८), नानगास्कर (१८८), प्रदीपिका (१८८३), करमसंवद् (१८९८), नामचिन्तामणि (१९८३), हरिनतरङ्ग (१८६५), मूलभारत(१११२), भारतसावित्री १११,१२), भारप्तकवितावली (१९१३), भोपासप्तशती (१९५७), फर्विज्ञोचन (१९९८), बाल्दा रामायण (१९२२), आस्दा भारत (१ ), भिम यौनरूक्त (१९५५), मूल वेला (१९२५), इसे लावनी (१९२६) यारम रामायणा, पक रामायशः, नामकरण, सीतास्यम्पर, रामनियाद, भारतवातिक, रामायग्यतृभिरगो, विलासखंड, पूzारखंड, मिथिलाड, दानलेाभसंबाद और जन्म बंद । । ज्ञात संचती हैं इनके गन्ध ।।३ वर्षों पर ले ६! इन्होंने पछि छ। में रचना की है, जिसका चमत्कार साधारण दी ग ६। आग ने प्रजमापा का श्यैग किया है। उदाईरष :--