पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५२३

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! आज की जाये तो यहुत से पापबंध हस्तगत हो सकते हैं । भाषा इस अंथ पी साधारण ४ फी है। उदादी-एकादि मस्त गाना ।। स्वतिर्थ गशपतिदसन रूप भूमि अय चंद। गुट पुत्र स्वछ यि एक सचिदानंद ॥ (११३६) हरिवल्लभ ] इन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का भरपानुयाद ही में क्रिया, परंतु कधी अन् संवत् या अपना पता नहीं दिया । इमारे पास इसकी एक लिने पुस्तक संयन् १८९५ की वर्तमान है । अतः इसका रचनाकाल इसके प्रथम का होगी। यह अनुबाद अच्छा हुपा है । यद्यपि गदा से अंथ | अनुनाद करना और उसके पण शाक को अभिमाय पफी दैाई में कई देना पड़ाही कठिन काम हैं, जब शायद ही नहीं सकता, तथापि इन्होंने जो अनुः याद किया है वह संतापापफ ६ । यद्द गौता मूल, अनुवाद, हुन्वय और चातिक अर्थं से अलंकृत करके हमीवेंकटेश्वर मैस के स्वामी ने प्रकाशित किया है। इसमें कहीं कहीं दोहों में अशुद्धिय रद्दगई हैं, तो भी पुस्तक देखने मेरे पड़ने योग्य है। ज़ में इनका पक र अथ संगीत भाषा मिला है । काय के विचार से एम रियल जी की साधारण ४ी में रखते हैं। हृरत मरे लचि है जीते पुसुम भाग। इटि प्रक्षु न तु जुद्ध करि यदै जु ता फी याग ॥ १ ॥ लाभ नि अ६ दुःस्न सुघ छाभ हानि समज्ञानि ।। तासै अरजुन युद्ध करि पाप छेहि जन मारी ॥३॥