पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५२६

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मैत्रीमपीए-काज्ञ ] इतराबंकूत पकरवा । ६१७ र प्रदरिहार्य की कथा कहा कहैं सुन्द शैकि धाक के है सुप्रशोक पुष्पमंजरी ॥ { आशाक पुष्पमंजरी छस् का जाद्दरण हैं) नाक कारन अाग्न चरन चित हुने निष्कर। चंद चंद तन चरिंत चंदयल चइत अनुर नर ।। चनुक बंद कचुर बानि दिक चक भाकर। चंछ चलित सुरेस चुल्नुत चक्र धनुरदर ।। पर अमर, हितू ज्ञान तैरन छुनते चइकि स्रिनंद सुचि । जिन धन्यु घर या चच चित चयर, नाच रॉच्च च । इस कवि के रचे हुए मघवनला और घुम्दाधनविदास नामक दैा उत्तम प्रन्थ हमारे पास हैं। इस समय के अन्य कवि गए । नाम-१३ ३८) जैन साधु । प्रन्थ-स्वरथा अळवारी । कविताकाल-१८५६।। गन-११३८) अलिरलिकगावि, जैपुर। अन्ध-(१) गोविन्दामापन, २) अएदेश भापा, (३) युगलरस- माधुरी, (४) कलियुगरासा, (५) पिपल प्रय, () समय- प्रश्न्ध, (७) श्रीरामायसूदने । कन्याफल-१८५७।। बिबरगा-रिव्यास के शिष्य हैकर पृन्दावन में एने थे।