पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५५५ रिश्रय-विना ।। (सं. १८३ प्रेन्प-दफतररस । यिताका–१८६२। वियर--साधारण थे यो । नाम-(११७१) चन्द्रघन । ध–गावतसार भाप । कविताकाल—१८६३ के पहले। नाम–१११७२) चन्द, जैपुर । प्रथ–स्वामी कार्तिकायन प्रेक्ष । करिताकाल-१८६३।। वियर-निरंथ हैं। भाम-(११७३) दिनेश, टिकारी, गया। अंश—(१) रसस्य, (२) नशिस्त्र । कचिठाकाळ--१८६६। बियर--साधारण में दी । नाम--(११७४) मंसान पड़े। प्र--मारतबन्छ । कविनापाल--६६४। विपरप-महाभारत का सार घनाया है। साधारण थे। नाम--(११७५) देवीदास कीयस्थ, ट्रटम, राज छतरपुर । अंय-(१) सुदामाचरित्र, (२) घनुमत-नयशिख, (३) नाममा रामायण ( इकागद), (४) राजनीति के कवित्त ।