पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५४४

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| धेनीप्री-कात ] उत्तरानंकृत प्रकरण । ६५३ नाम (१२१७) गंगाप्रसाद उशैनेया । फ्रन्थमानुग्रह। इचिवाकोट१८३। नाम-(१९१८) जयगोपालखंद्द झाषासः । मन्य—(१) तुलदार्थप्रकाश । कविताहाल--१८७३। विवरग-रामगुलाम मिर्जापुर धाले के बुलं है। नाम (१३१६) मनाय। ग्रन्थ-चिनकूट सतमाला । कपिताकाल—१८७४। नाम--(१३२०) रसालगिदि । मन्थ-(१) धैयर्मकार, (२) चरोदर्य। कचिचाका-३८g ! बिचर-मैनपुरीनिवासीमादि गिरि के शिष्य थे । सन्यासी हो कर मथुरा चले गये। नाम-(१२२१) दज द्दीनदास । ग्रन्थ-गैकुलफोड़। कविकास–१८५६ पूर्व । म–११३३२) अहो । जन्मकार--१८५३)