पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५५०

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पद्माकर ] उत्तरालंकृत प्रकरण । धन्य जनक तुम दीळ भाई । पूजस जिनहिँ सकल ऋपिराई । तुम नित बहु अनन्द अधायें । मैं रूई ‘दशरथ बेरन । नान्दोमुख ठा। कीन्ह साधू । पूजि तुहिव शुरू मुनि साधू । प्रातर्हि व गोदान कराये । इफ इक शास्त्र सुप्रिन पाये ॥ विधियत या सुतने से ये गैदिान दिवाये। चायत भै धन विजन को दशरथ यि हुरपाय । बाँदा में बहुत लोग कहते हैं कि यह अन्ध पद्माफरत नहीं हैं परन् इनके सीनारेन से उत्पन्न हुए पुन्न मनीराम का बनाया हुआ है। पहुमाकरजी हिम्मतबहादुर के संवत् १८४९ घाले एक युद्ध में पर्तमान थे। इसका सेवन पद्मावर जी ने स्वयं वर्णन किया है । हिम्मतबहादुर पहले नखात्र वादा के यहाँ रहते थे। ये चट्टे बादुर युद्ध-फर्ता थे। पीछे से ये अवध के बादशाह के या नकर व गये और उनकी ये से बहुत सी छाइये में सम्मिलित । चै मलाशय बक्सर की लड़ाई में भी छड़े और उसमें घायल हुए थे। पद्माकर जी ने इनके साथ बहुत दिन। ः रह कर " हिक्मतबहादुरबिरदायी " नामक एक उत्तम ग्रंथ यनीया । यह अन्य इमने नागरीचागी अन्य मरला द्वारा मफारिस देखा है और भए हमारे पुस्तकालय में प्रस्तुा है। इनके साप पद्माकर संपत् १८५६ तक रहे थे। से। उसी समय तक यह सँध बना देगा। झी टैग याही जे सिलाडी चढे घान १ स्याही बर्दै अमित अविन की पेड़ है।