पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५५१

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निश्शन्धविना। [सं० १८४६ ३ पटुमाकर निसान चढ़े दायिन ६ धूरिधार पाकसिन के सैल ३ ।। साxि चतुरंग चम् जंग जीतने के लिए हिम्मति यहादुर छत फर फैछ ६ ।। लाली चदै मुन्न १ वाली च वाहन १ काली चढ़ सिंह के कपाट चईं वैल पे॥१॥ तुपक तमंचे छोर शेर तरयान में। फाटि काटि सेना क साचित सारे फीं। कई पदुमाकर मदायत में गिरे आदि विलक्ष किलाए आप गज़ मतदार की । हैरन एसन इन सान धन पह। शुन पर घोर अरजुन मारे फी ।। कॅगन या करयो सूरन में साझा जिति ताका प्रह्मलोक की पतीफा है मैयारे ।।२।। इस ग्नेय की कविता मनीर और भाषा प्राङ्तमधित प्रज्ञ मापा ६ । संवत् १८५६ में पद्माकर जी सितारे के महाराज - नाये रात्र उपनाम रघाबा के यहाँ गये। सुना जाता है कि इनकी कविता से प्रसन्न कर रघुनाथ राय ने इन्हें १ इय, १ लाख _' कृपया मेर १० गतेय दिये। सुनाथ रार्थ दान की असा गनिनाद में कई जगह पति है। उनके यहां कुछ दिन रह कर पद्माकर की जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह के यह गर्थे । प्रतापसिंह जी बड़े पर पुष्प ने ये अतिरिक्त फांध भी थे, अतः ५ इने पद्माकर को सम्मान करके उन्हें अपने यहाँ नीकर म