पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५५३

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५६३ मिश्नरुधुदिनोद। [५० १८७६ जरिए कप मैंदलाल की दृगन श्री मद् भान | तन्नि पियुप फेऊ करत का पैनधि है। पान ।। ती चिमन फी मधुरता ही दुधा मद्द” ट्राय । स्वाद घमण नट भीन की नैनन शही नाथ ॥ संवत् १८७१ में महारज्ञ मानसिंह का विवाह जगतसिंह की थहन से पार, गद्दाराजा जगसिंद का रह गागढ़ के राजा मानसिंह के यद हुआ। उस समय जगतसिंहजी के साथ पद्मा- करजी भी थे और उनसे प्रेर कविराज्ञा वकीदास से छेड़ छाड हुई थी। तदनन्तर पदकी उदयपुर के महाराजाभीमसिंह के यहाँ गये ।। भीमसिंहजी या राजत्वकाळ संवत् १८३६ से १८८६ तक रहर है। घनकै । पदाफरजी संभवत' संच १८७३ ॐ लग भाग गये हैं। घाँ आकर रानाकी ६ चियिनोदार्थ इन्होंने गुनगैर भेलै का वर्णन किया । इस मेले की रानार्जर बहुत पसंद करते थे। । यद् भेला उदयपुर में अब तक होता है। रानाजी ने इनका घड़ा सम्मान करणे सुवर्णपदक चैर भूपादे देकर इन्हें प्रसन्न किया । | फुछ दिन के पीछे चेग्वालियर के महाराज्ञा सेंधा छतरीय के दरबार में गर्थे । इनको राजत्वकाळ संच १८५३ से १८८५ तक है। सेंचया महाराज | यहाँ इन्होंने निम्नलिखित छन्द पढ़ाः -- भीनगढ़ चम्पई सुमद मंदराज, बैंग, बंदर से बंद करे बंदर बलावै ।