पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५५४

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नाकर ] उत्तरात प्रग । कई पदुगाकर कसक कासमीर की पिंजर से घेरि के फलिझुर छुड़ावै ।। बांका नूप शैलत अलीजा महुयज्ञ कर्वे साज्ञि दल पर फिशन दास ।। वि दृष्ट्पट्टि पट्ना हु की झप करे। फवक ला कलकत्ता में उड़ावैगा ॥ सधयाँ महानि के यह भी पद्माकर का अच्छा मान दु । इनके नाम पर पद्माकरजी में प्रालीजाप्रकाश नामक अन्य घनायी है, परन्तु सुना जाता है कि इसके बाद मैं दौलतराव की प्रशंसा के कुछ छन् रण कर मुख्य विषय में कघि नै जगनिद ही वो रख दिया है । यद् ग्रंथ अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ, मेर में हमने इसे वैया है । अतः इसके विपय में नियामक कुछ नहीं कई सकसें । कहते हैं कि सेंधिया-दरवार के मुख्य मुसाइब कदाजी दकितनो के फटने से ग्राफर ने हितोपदेश का भापानुषाद भी | किया था। यह प्रन्य भी अभी प्रकाशित नहीं हुआ और ३ हमारे देने में आया है। अतः हम इसके चाचत नहीं कह सकते कि इसकी फविता कैसी है, और इसका पाकर द्वारा इस समय नर्मित होना ठीक है या नहीं। | पंदित मकझेदी विषारी मै पाकर का रघुनाथ राव के यहाँ पालतरव के यहाँ होकर मैशर चद्द अलीजाप्रकाश और | भाषा-हिरोपदेश बनाकर जयपुर जाना लिया है। परन्तु म