| पद्माकर | रारालंकृत प्रकरण। पशाफर की घनता में अढ़िया छंद बहुतायत से पाये जाते हैं। | इदाहरण देना एम व्यर्थ समझते हैं, क्योंकि ऐसे छंद मकै फिसी अछे अन्ध में हर मह मिर्च कळे हैं और ऊपर है, उद्धृत छन् में भी आ मुके हैं। | ईयजी की भाँति पद्माकर ने भी कद का पैसा सच्चा घन किया है कि मानी तसघीर च दी है । यथा- आरस से आरत सम्हारत म सीस-पट गञ्जव गुप्तरित गीन को धारः परः । कई पटुमाकरः सुरा से चरसार कैसे विधुर विराज वर हीरन के द्वार पर । झाझ छवाले अिति हरि छ्या के आर भैर उहि प्याई के लि-मन्दिर दुअर पर! मत प६ीप्तर में एक देहरी ३धरे । एफ फरर्फ एक फ़र, ६ किंवार पर । | इससे रिशेप इनकी कॉचिंता ज्ञा पाठ देनी घाई उनकै चर्चा में पद्माकररपिता जगद, गंगाबहरी और मवोध- पत्रासा देखें । |घतेरे कचियां की दृष्टि में इनकी कचिंता विलकुल निन्य ६ फ्याँकि उनके मठासार पदलालित्य के फेर में पड़ कर इन्होंने निरर्थक अथवा शिथिल अर्थयाळे इदं बहुत से रख दिये हैं और निकै विशेषग्य चतुत पाने पर अप्रयुक्त पर्व अशुद्ध हैं। इधर भार- न्टु बाबू हरिश्चन्द्र शक इनकी कविता के प्रेमी थे और मरमवारी : में उन्होंने मुफफेठ से नफा झारी कवि ना स्वीकार किया है।